Wednesday, August 16, 2023

शहीदों की चिताओं पर / जगदंबा प्रसाद मिश्र ‘हितैषी’

 उरूजे कामयाबी पर कभी हिन्दोस्ताँ होगा

रिहा सैयाद के हाथों से अपना आशियाँ होगा


चखाएँगे मज़ा बर्बादिए गुलशन का गुलचीं को

बहार आ जाएगी उस दम जब अपना बाग़बाँ होगा


ये आए दिन की छेड़ अच्छी नहीं ऐ ख़ंजरे क़ातिल

पता कब फ़ैसला उनके हमारे दरमियाँ होगा


जुदा मत हो मेरे पहलू से ऐ दर्दे वतन हरगिज़

न जाने बाद मुर्दन मैं कहाँ औ तू कहाँ होगा


वतन की आबरू का पास देखें कौन करता है

सुना है आज मक़तल में हमारा इम्तिहाँ होगा


शहीदों की चिताओं पर लगेगें हर बरस मेले

वतन पर मरनेवालों का यही बाक़ी निशाँ होगा


कभी वह दिन भी आएगा जब अपना राज देखेंगे

जब अपनी ही ज़मीं होगी और अपना आसमाँ होगा


रचनाकाल : 1916