किसके लिये लिखूँ मैं
है कोई इसे पढ़ने वाला
है कोई इसे समझने वाला
है कोई इसे जीने वाला
खो जाएँगे यह भी लाखों की भीड़ में कहीं
बिन कहे अपना पूरा सच
बिन जिए अपने अधूरे सपने
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किसके लिये लिखूँ मैं
है कोई इसे पढ़ने वाला
है कोई इसे समझने वाला
है कोई इसे जीने वाला
खो जाएँगे यह भी लाखों की भीड़ में कहीं
बिन कहे अपना पूरा सच
बिन जिए अपने अधूरे सपने
कैसी नींद है यह
कुछ ख़याल सोते नहीं
कुछ पलकें झपकती नहीं
बदली सी मचलती है
इन आँखों को थकाकर
फिर ओझल हो जाती है
कहीं रात के अंधेरे में
बाट देखते, इंतज़ार करते
चाँदनी समेट लेती है
थाम लेती है चंचल मन को
Alone at night
With just vodka for company
One full glass
Thoughts run amok
North Pole to the south
In all directions
So many perspectives
Emerge, merge and then disappear
One after another
Making you realise
Nothing is worth the struggle
To seek yourself
This one night
Lonely dark desolate and sad
Is your reality
किस भीड़ में खोये हो
किस राह की तलाश है
किस मंज़र का इंतज़ार है
ना होगी कोई दस्तक
ना होगी कोई खटक
बस बेगाने कभी अपने ही चलेंगे
और कभी अपने पराये
ढूँढो खुद को इस भीड़ मे
तराशो अपना रास्ता
मोड़ तो बहुत आयेंगे
पर सन्नाटे में, द्वंद में
उन अंधेरी तन्हा गलियों में
हमेशा अकेले ही ख़ुद तो पाओगे