Saturday, July 29, 2023

किसके लिये लिखूँ

 किसके लिये लिखूँ मैं 

है कोई इसे पढ़ने वाला 

है कोई इसे समझने वाला 

है कोई इसे जीने वाला 

खो जाएँगे यह भी लाखों की भीड़ में कहीं 

बिन कहे अपना पूरा सच 

बिन जिए अपने अधूरे सपने

नींद

 कैसी नींद है यह 

कुछ ख़याल सोते नहीं 

कुछ पलकें झपकती नहीं

बदली सी मचलती है 

इन आँखों को थकाकर

फिर ओझल हो जाती है 

कहीं रात के अंधेरे में 

बाट देखते, इंतज़ार करते

चाँदनी समेट लेती है 

थाम लेती है चंचल मन को

Reality

 Alone at night 

With just vodka for company 

One full glass 


Thoughts run amok 

North Pole to the south 

In all directions 


So many perspectives 

Emerge, merge and then disappear 

One after another 


Making you realise 

Nothing is worth the struggle 

To seek yourself 


This one night 

Lonely dark desolate and sad 

Is your reality

भीड़ और मैं

 किस भीड़ में खोये हो 

किस राह की तलाश है 

किस मंज़र का इंतज़ार है 

ना होगी कोई दस्तक

ना होगी कोई खटक

बस बेगाने कभी अपने ही चलेंगे 

और कभी अपने पराये 

ढूँढो खुद को इस भीड़ मे

तराशो अपना रास्ता 

मोड़ तो बहुत आयेंगे 

पर सन्नाटे में, द्वंद में 

उन अंधेरी तन्हा गलियों में 

हमेशा अकेले ही ख़ुद तो पाओगे