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कैसी नींद है यह
कुछ ख़याल सोते नहीं
कुछ पलकें झपकती नहीं
बदली सी मचलती है
इन आँखों को थकाकर
फिर ओझल हो जाती है
कहीं रात के अंधेरे में
बाट देखते, इंतज़ार करते
चाँदनी समेट लेती है
थाम लेती है चंचल मन को
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